दुनिया का ध्यान अपनी तरफ खींचने के लिए हमारे पास पर्याप्त कारण है या ये कहे की जरुरत से ज्यादा है। आखिर हम इतनी बड़ी इकॉनमी जो हो , और इतना बड़ा मार्केट जो है , फिल्मे भी है पर ये तो कुछ मात्र है हम तो उस हद तक जा सकते है जिस तक बाकि बची दुनिया सिर्फ सोच सकती है। दुनिया के दूसरे देशो के नागरिको को हमारी इन चीज़े से जलन हो सकती है क्योकि वो ये चीज़े कभी नहीं कर सकते जो हम कर सकते है। कुछ ऐसे ही अनोखे टेलेंट जिनकी वजह से है हम पूरी दुनिया पर भारी।
हमारे मार्वल्स के सुपरहीरो
मार्वल्स के हीरो तो सिर्फ फिल्मो के हीरो है लेकिन हमारे देश में तो कोने कोने में सुपर हीरो साधारण इंसानो की तरह रहते है और जरुरत पड़ने पर निकल पड़ते है दुनिया को बचाने , ट्रैन से । इन्हे इस बात के चिंता ज्यादा है की ये अपने डेस्टिनेशन तक पहुंच जाए वजह इसके की ये कही ऊपर न पहुंच जाए। कुछ तो ऐसे दिखा रहे है जैसे ट्रैन इन्हे नहीं ये ट्रैन को ला रहे है। ट्रैन से इस प्रकार का सफर करना दूसरे देश के नागरिको के लिए किसी सपने जैसा है पर हमारे लिए रोज का काम।
भगा
हेलमेट पहनना हमारी प्राथमिकता हो सकती है अगर हमें पुलिस से बचकर निकलना नहीं आता क्योकि अगर सेफ्टी की बात तो इससे पहले वाली पिक्चर से पता चल गया होगा कि हम खतरों के खिलाडी है . अब अगर सामने ट्रैफिक पुलिस वाला खड़ा है तो हम बचकर निकलने में धूम 3 में आमिर खान को भी मात दे सकते है।
स्पीड ब्रेकर के बगल से बाइक निकलना
दुनिया की कोई भी चीज़ हमारी आगे बढ़ने की स्पीड को कम नहीं कर सकती फिर चाहे उसका नाम स्पीड ब्रेकर ही क्यों न हो। स्पीड ब्रेकर के साइड से गाड़ी निकलना हो या फिर स्पीड ब्रेकर के उस हिस्से से अपनी गाड़ी निकलना जहाँ से स्पीड ब्रेकर थोड़ा सा भी टूटा हुआ है , हमारे कई सारे अद्भुत हुनरो में से एक है।
टूथपेस्ट में से टूथपेस्ट नहीं उसकी जान निकलना
थोड़ा और की हमारी फिलॉसफी का आलम ये है कि हम चीज़ो को उस समय तक यूज करते जब तक वो कोई और काम के लिए यूस करने लायक न हो जाए। टूथपेस्ट भी इसी का शिकार है आज भी आपको ज्यादातर इंडियन घर में ऐसे टूथपेस्ट मिल जाएंगे जो खाली तो है लेकिन उनमे से और पेस्ट निकलने की संभावनाए आपार है।
ये सिर्फ टूथपेस्ट निकालने तक ख़तम नहीं होता कुछ महान तो टूथपेस्ट का पोस्टमार्टम करके आखिरी अरग तक निकाल मारते है। इसी को ध्यान में रखकर कई कम्पनिया ने टूथपेस्ट से पेस्ट निकलने के लिए कही टूल मार्किट में लांच किया है और यूट्यूब पर भी कई सारे टुटोरिअल टूथपेस्ट्स से पेस्ट को पूरी तरह निकलने के तरीके बताने के लिए डले हुए है।
सुपर सेफ्टी
दुनिया के किसी देश में इतने टोटके नहीं होते जितने हमारे देश में होते है। हमारी करोड़ो की धन सम्पदा को बुरी नजर से बचने के लिए दो रुपए का नीबू मिर्ची काफी है।
हाथो का बेहतरीन इस्तेमाल
दुनिया में जब खाना खाने और बनाने की चीज़े नहीं आई थी तब लोग पत्ते पर और हाथो से ही खाना खाते थे लेकिन हम आज भी वैसे ही खाना पसंद करते है। कुछ लोगो से तो ये भी सुन लीजिए की हाथ से खाए बिना खाने में स्वाद ही नहीं आता अब वो स्वाद खाने का ही होता कौन जाने ?
सही लगा लो यार
कोई हमें दुकान पर सामान कितना भी कम का दे हम उसे और कम में लेकर न आये तो ये हमारी शान के खिलाफ है। अब इसमें फैक्ट ये है कि जब आप किसी से कम में खरीदते है तो वो भी किसी से कम में ही खरीदने की कोशिश करता है और फिर ये एक चैन बन जाती है।
इसलिए आपको अलग अलग दुकानों पर कुछ पान्च लाइन सुनने को मिल जाएगी जैसे हमारा बजट ही ये है (जेब में पड़ा पैसा भी किसी का बजट हो सकता है), सही लगा लो(लगभग हर दुकान पर), मै हमेशा आप ही के जहाँ से ले जाता हु(ट्रिंक नंबर 3 ), देखलो आगे और भी लेना है (ट्रिक नंबर 4), और अगर दुकानदार ने मेहेंगा चिपका दिया तो उसके बाद कुछ न कुछ ऊपर से फ्री का लेना है (ज्यादातर सब्जियों की दुकान पर).
हम साल में 367 फेस्टिवल मना सकते है
यकीन मानिए की अगर किसी साल में 365 और 366 के बाद अगर 377 दिन भी होते तो हमारी किसी न किसी किताब या ग्रन्थ में उस दिन भी कोई न कोई फेस्टिवल जरूर लिखा होता। दुनिया के किसी देश में इतने फेस्टिवल न ही मनाए जाते है और न ही मनाए जा सकते है पर हम दीवाने हर दिन किसी न किसी फेस्टिवल का आनंद लेते है। इसलिए अक्सर मजाक में कहा जाता है कि इंडिया में जितने दिन नहीं है उससे ज्यादा तो फेस्टिवल होते है।
क्या लेंगे आप? मसाला !..
लोग गलत कहते है कि हम खाने के शौकीन है हम तो मसलो के शौकीन है। खाना मत दो मसाला दे दो पेट भरे या नहीं लेकिन मन तो भरना ही चाहिए . हम कितना भी मसाले दार खा सकते इतना भी कि कोई अमेरिकी इतना स्पाइसी खाकर मौके पर ही भगवान् को प्यारा हो जाए।
मेहमान भगवान् होता है ,अगर समय पर आये और समय पर जाए तो
बिना अपॉइंटमेंट और जानकारी के मेहमान बनकर रिश्तेदारों और दोस्तों के घरो पर आ धमकना भी हमें आता है और फिर हमारा सरप्राइज की गुगली देकर जले पर नमक छिड़कना भी कमाल है और इस स्थिति में घर आया मेहमान कब भगवान से शैतान बन जाता है ये न मेहमान को पता चलता है और न ही मेजवान को।
गली क्रिकेट
खेलने के लिए हमें किसी प्लेग्राउंड या स्पेशल जगह की जरुरत नहीं है और क्रिकेट के लिए तो बिलकुल नहीं। बस जरुरत है तो एक ऐसे व्यक्ति की जिसके पास बेट और बॉल हो ,बस फिर क्या हमारे लिए ये मैच देश के मैच से भी जरुरी हो जाता है ,क्योकि बेट बोल वाले के प्रति एक गलत डिसीजन और मैच रद।
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