54 साल तक भारतीय राजनीति में सक्रिय रहे में रहे अटल बिहारी वाजपेई किसी परिचय के मोहताज नहीं है। जीवन संघर्ष में बीता ,लोगों के सपने सच करने और भारत को नई राह दिखाने के लिए वे राजनीति में कूद पड़े। अटल जी के जीवन के दो पहलू हैं पहला तो राजनीतिक दूसरा साहित्य । पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में रहे फिर जनसंघ और उसके बाद भारतीय जनता पार्टी के सुप्रीम लीडर। अटल बिहारी वाजपेई देश के उन नेताओं में शुमार हैं , जिनकी छवि एक बेदाग नेता कि है। अटल बिहारी वाजपेई चार दशकों तक संसद के सदस्य रहे।
अटल बिहारी बाजपेयी जी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को मध्यप्रदेश के ग्वालियर शहर में हुआ। अटल जी के सात भाई बहन थे। उनकी माताजी का नाम कृष्णा देवी और पिताजी का नाम कृष्णा बिहारी वाजपेई था।उनके पिताजी अपने गांव के एक प्रसिद्ध कवि व स्कूल टीचर थे। अटल जी का कहना है कि वह बचपन में अपने पिताजी से इतने प्रभावित थे कि वह भी उनकी तरह ही लिखना और बनना चाहते थे। उन्होंने अपनी स्कूलिंग गवर्नमेंट हायर सेकेंडरी स्कूल गोरखी , ग्वालियर से की उसके बाद उन्होंने विक्टोरिया कॉलेज से अपनी ग्रेजुएशन पूरी कर आगे की शिक्षा पाने के लिए कानपुर चले गए जहां उन्होंने DAVV कॉलेज से पॉलिटिकल साइंस में M. A किया।
वह न सिर्फ देश के प्रधानमंत्री रहे बल्कि एक हिन्दी कवि, पत्रकार और प्रखर वक्ता भी थे । उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन भारतीय राजनीति में सक्रिय रहकर बिताया। अटलजी लंबे समय तक राष्ट्रधर्म, पांच तंत्र और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। वाजपेयी ने कई मुद्दों पर ऐसी कविताएं लिखीं, जिसे कोई भी पढ़कर प्रफुल्लित हो उठेगा।उनके राजनीतिक विरोधी भी उन्हें एक स्टेट नेता मानते थे।
राजनीति में जो उन्होंने अपनी गहरी छाप छोड़ी है वह वाकई काबिले तारीफ है। यही कारण था अटल बिहारी वाजपेई जी को राजनीतिक का भीष्म पितामह भी कहते हैं। आप इनकी सफलता का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि यह भारत के एक या दो बार नहीं बल्कि 3 बार प्रधानमंत्री बन चुके हैं। अपने सधी हुई भाषा ,भाषणो और कविताओं से उन्होंने विपक्ष , पड़ोसी मुल्को और दुनिया की तमाम बड़ी ताकतो को मुँह तोड़ जबाब दिया।
अटल बिहारी वाजपेई में देशभक्ति कूट-कूट कर भरी है आजादी की लड़ाई के साथ अटल जी का राजनीतिक सफर स्वतंत्रता संग्रामी के रूप में शुरू हुआ था। 1942 में उन्होंने गाँधी जी द्वारा चलाए गए भारत छोड़ो आंदोलन में भी हिस्सा लिया। 1942 में जेल गए। 1975 में इमरजेंसी के दौरान उन्हें फिर से जेल में रहना पड़ा। और इसी दौरान उनकी मुलाकात भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष श्यामा प्रसाद मुखर्जी से हुई। श्यामा मुखर्जी के साथ रहकर राजनीति के दांव पेंच सीखें ,लेकिन कुछ ही समय बाद मुखर्जी का स्वास्थ्य खराब रहने लगा और जल्द ही उनकी मृत्यु हो गई।
उसके बाद से ही अटल जी ने भारतीय जनसंघ की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली और उसका विस्तार पूरे देश में किया बस वही से अटल जी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1954 के चुनाव में वे बलरामपुर से मेंबर ऑफ पार्लियामेंट चुने गए। काम के प्रति सच्ची लगन और कड़ी मेहनत को पहचाना तो 1968 में उन्हें जनसंघ पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया। पार्टी का अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने अपनी पार्टी को आगे बढ़ाने के लिए कड़ी मेहनत की लेकिन जब उन्हें लगा कि अपनी पार्टी को आगे बढ़ाने के लिए उन्हें किसी दूसरी पार्टी की मदद चाहिए तो 1977 में उन्होंने भारतीय लोकदल के साथ गठबंधन कर लिया और जिसे जनता पार्टी नाम दिया गया।
जनता पार्टी ने बहुत ही जल्दी ग्रोथ कर ली और उन्हें लोकल चुनाव में सफलता मिलती गई। इसके बाद जब जनता पार्टी के लीडर मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री बनाया गया तो अटल बिहारी वाजपेई जी को विदेश मंत्री बनाया गया। सब कुछ सही चल ही रहा था तभी पार्टी में फूट गई और 1979 में मोरारजी देसाई ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। पार्टी बिखरने लगी ,जब अटल जी ने देखा कि पार्टी बिखर रही है तो उन्होंने अगली ही साल 1980 में लालकृष्ण आडवाणी और भेरो सिंह के साथ मिलकर भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की और पार्टी के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष भी अटल जी ही बने। इसके बाद वे एक एक कर चुनाव जीतते चले गए। जब जनता ने राजनीति में उनकी गहरी सोच और समझ को देखा तो 1996 में उन्हें भारत का 13वा प्रधानमंत्री बना दिया गया लेकिन पार्टी में विवाद की वजह से उन्हें केवल 13 दिनों में ही अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा लेकिन फिर से वे 1998 से 1999 तक और 1999 से 2004 तक भारत के प्रधानमंत्री बने लेकिन इस समय तक उनकी उम्र बढ़ चुकी थी और उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था और आखिरकार 2005 में उन्होंने राजनीति से रिटायरमेंट ले लिया
अटल जी को राजनीति में अपनी सोच और सफलता के लिए पद्म भूषण(1992), लोकमान्य तिलक अवार्ड(1994) ,बेस्ट संसद अवार्ड (1994), पंडित गोविन्द बल्लभ पंत अवार्ड (1994) और भारत रत्न (2014) से सम्मानित किया गया है। इसमें सबसे खास बात यह है कि उस समय के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उनके घर पर जाकर उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया और अटल जी के लिए पहली बार किसी राष्ट्रपति ने प्रोटोकॉल तोड़कर ऐसा किया । वे एक लेखक बनना चाहते थे और उन्होंने अपना यह सपना भी पूरा किया उन्होंने शक्ति की शांति ,क्या खोया क्या पाया और संकल्प काल जैसी प्रसिद्ध किताबें लिखी हैं आज अटल जी की उम्र 93 साल हो चुकी है और उनको घुटने का दर्द और शुगर जैसी बड़ी बीमारियां से भी लड़े।
प्रतिभावान और देश भक्त अटल बिहारी बाजपेई ने आजादी के 71 वर्ष पुरे होते है यानि 16 अगस्त 2018 को AIIMS अस्पताल में 5 बजकर 5 मिनट पर उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।
बड़ी उपलब्धिया
- नेहरू जी के बाद भारत के तीन बार प्रधानमंत्री बने।
- भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की।
- 1998 में प्रधानमंत्री बनने के एक महीने के अंदर ही राजस्थान के पोखरण में परमाणु परिक्षण कर दुनिया को भारत की ताकत दिखाई।
- शिक्षा के अधिकार के लिए DNA की स्क्रिप्ट तैयार कराई।
- टेलीकॉम इंडस्ट्री में क्रन्तिकारी सफलता लाए।
- भारत से विदेशो के सम्बन्धो में सुधार लाए।
- दिल्ली मेट्रो के बहुप्रेक्षित प्रोजेक्ट को अप्रूवल दिया।
- 15 अगस्त 2003 में अटल जी ने भारत के पहले चाँद पर पहुंचने वाले प्रोजेक्ट(चन्द्रयान -1 ) की घोषणा की।
- प्रधानमंत्री के तौर पर उनकी “द नेशनल हाइवेज डेवलपमेंट”(NHDP ) और “प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना”(PMGSY) दो सबसे बड़ी उपलब्धिया थी।
- गरीबो के लिए उन्होंने जनश्री बीमा योजना भी चलाई
- सभी के लिए आवास के तहत उन्होंने प्रधानमंत्री ग्राम उदय योजना भी चलाई।
बाजपेई जी एक उम्दा कवि भी थे और देश के हालात और परिस्थितियों को लेकर उन्होंने कई कविताएं लिखिए उनमे से कुछ कविताओं के अंश
टूटे हुए सपनों की सुने कौन सिसकी ,अंतर को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा रार नहीं ठानूंगा ,काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं,
गीत नया गाता हूं गीत नया गाता हूं।
भरी दुपहरी में अंधियारा,सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़े ,बुझी हुई बाती सुलगाएँ
आओ फिर से दिया जलाएं ,आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा ,अंतिम जय का बज़्र बनाने नव दधीचि हड्डियां गलाएं
आओ फिर से दिया जलाएं
ऊंचे पहाड़ों पर पेड़ नहीं लगते ,पौधे नहीं होते
जमती है सिर्फ बर्फ ,जो कफन की तरह सफेद और मौत की तरह ठंडी होती है
मेरे प्रभु मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना ,गैरों को गले न लगा सकूं ऐसी रुखाई ना देना
आज सिंधु में ज्वार उठा है ,लागपथ फिर ललकार उठा है
कुरुक्षेत्र के कण-कण से फिर पंच जन्य हुंकार उठा है
सत सत आठों हाथों को सहकर जीवित हिंदुस्तान हमारा
जग के मस्तक पर रोली सा शोभित हिंदुस्तान हमारा
गीत नहीं गाता हूं ,बेनकाब चेहरे हैं दाग बड़े गहरे हैं
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं ,गीत नहीं गाता हूं
लगी कुछ ऐसी नज़र शीशे सा बिखरा शहर ,अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं
गीत नहीं गाता हूं गीत नहीं गाता हूं ,पीठ में छुरी सा चांद
राहु रेखा गया फांद ,मुक्ति के क्षणों में बार-बार बंद हो जाता हूं
गीत नहीं गाता हूं गीत नहीं गाता हूं
आंसू है ना मुस्कान है झील के तट पर अकेला गुनगुनाता हूं ना चुप हूं न गाता हूं
यह परंपरा का प्रवाह है कभी ना खंडित होगा ,
यह परंपरा का प्रवाह है कभी न खंडित होगा
पुत्रों के बल पर ही मां का मस्तक मंडित होगा
वह कपूत है जिसके रहते मां की दीन दशा हो ,
वह कपूत है जिसके रहते मां की दीन दशा हो
सात भाई का महल उजड़ता जिसका घर बसा हो
घर का दीपक व्यर्थ जब मातृ मंदिर में अंधियारा
कैसा हास्य विलास कि जब तक बना हुआ बंटवारा
दूध में दरार पड़ गई खून क्यों सफेद हो गया,भेद में अभेद खो गया
बट गए शहीद गीत कट गए ,कलेजे में कटार दड़ गई
दूध में दरार पड़ गई ,खेतों में बारूदी गंध टूट गए नानक के छंद
बसंत से वहार झड़ गई दूध में दरार पड़ गई ,
अपनी ही छाया से बैर गले लगने लगे हैं गैर
खुदकुशी का रास्ता, तुम्हें वतन का वास्ता
बात बनाएं बिगड़ गई ,दूध में दरार पड़ गई
अपनी आजादी को दुनिया में कायम रख लोगे यह मत समझो
दस बीस अरब डॉलर लेकर आने वाली बर्बादी से तुम बच लोगे यह मत समझो
धमकी जिहाद के नारों से हथियारों से कश्मीर कभी हथिया लोगे यह मत समझो
हमलो से अत्याचारों से संहारो से भारत का शीश झुका लोगे यह मत समझो
छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता और टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता
मैंने जन्म नहीं मांगा था लेकिन मरण की मांग करूंगा
जाने कितनी बार जिया हूं जाने कितनी बार मारा हूं
जन्म मरण के फेरे में मैं पहले इतना नहीं डरा हूं
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